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जानिए कैसे कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स को आसानी से पूरा करने में मदद कर रहा है दिल्ली का यह स्टार्टअप

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कंस्ट्रक्शन के पेशे में प्रोजेक्ट में देरी के सिर्फ दो मतलब होते हैं- अधिक ब्याज का भुगतान और नाराज कस्टमर्स। प्रोजेक्ट पटरी से न उतरे, यह पक्का करने के लिए इसके विभिन्न पहलुओं की निगरानी करनी होती है और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से इस प्रक्रिया को काफी सरल और सुव्यस्थित बनाया जा सकता है।


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ट्रेसकॉस्ट की टीम



स्टार्टअप ट्रेसकॉस्ट (Tracecost) को 2019 में इसी इरादे के साथ शुरु किया गया था। यह प्रोजेक्ट मैनजरों और ठेकेदारों को डेटा साइंस और टेक्नोलॉजी के जरिए प्रोजेक्ट प्रंबंधन में मदद करती है।


ट्रेसकॉस्ट का प्रोजेक्ट मैनेजमेंट ऑटोमेशन सॉल्यूशंस, मैनुअल प्रक्रियाओं के साथ काम करने के पारंपरिक तरीके के मुकाबले अहम लाभ मुहैया कराता है। इसका मकसद कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में मौजूदा औसत शेड्यूल्स की तुलना में कहीं अधिक तेजी से प्रोजेक्ट की डिलीवरी सुनिश्चित करना है।


ट्रेसकॉस्ट को प्रभा पॉल, माधवी वालिया और सनी वोहरा ने मिलकर खोला है और इसका ऑफिस दिल्ली में है। इन तीनों को-फाउंडर्स के पास प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, आर्किटेक्चर और कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में करीब दो दशकों का गहन अनुभव और विशेषज्ञता है।


माधवी ने बताया,

"इंफ्रास्ट्रक्टर और कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में हमारे दशकों के अनुभव के दौरान हमने देखा कि दुनिया भर के प्रोजेक्ट ओनर, इंजीनियरों और ठेकेदारों से अपनी प्रोजेक्ट्स को समय पर डिलीवर करने की मांग कर रहे हैं। यह मांग ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री को मजबूर कर रही है कि वह काम करने के अपनी पारंपरिक तरीकों में बदलाव लाए और नई टेक्नोलॉजी को गले लगाए।"

वह बताती हैं कि भारत की इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री ने ग्लोबल स्टैंडर्ड के मुताबिक ऑटोमेशन को नहीं अपनाया है और वह अभी भी मैनुअल प्रक्रियाओं के साथ चिपकी हुई है। भारत में अधिकतर प्रोजेक्ट के देरी से चलने और इंफ्रास्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन कंपनियों के मुनाफे पर दबाव बनने के पीछे यही मुख्य कारण है।


फाउंडर्स का मानना है कि कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के लिए उनका सॉल्यूशंस काफी अहम साबित होगा। यह जिनकी समस्याओं का सॉल्यूशंस मुहैया कराता है उसमें वर्कफ्लो का बंटवारा भी शामिल है, खासतौर से बड़े प्रोजेक्टों में, जहां असल में मजदूर काम करने की तुलना में खोजने और जानकारी इकठ्ठा करने में अधिक समय खर्च करते हैं।


पॉल ने बताया,

"दर्जनों वर्षों तक एक ही इंडस्ट्री में काम करने के बाद हमने उन कारणों की पहचान की है, जिसके चलते भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री, ग्लोबल ट्रेंड्स के मुताबित टेक्नोलॉजी को नहीं अपना पाई। इसका कारण यह है कि वे रियल-टाइम में डेटा के प्रवाह को समझने की जगह एक्सेल शीट पर काम करने में खुश हैं।"

ट्रेसकॉस्ट की टीम

ये तिकड़ी कॉमन फ्रेंड्स के जरिए एक दूसरे से मिली थी और इन्होंने पाया कि इन सभी में आंत्रप्रेन्योरशिप को बराबर आग है। यही कारण है कि वे एक बिजनेस शुरु करने के आइडिया पर एक दूसरे के साथ चर्चा करने लगे। 


माधवी आईआईएम लखनऊ की पूर्व छात्रा हैं। स्टार्टअप के सीईओ के रूप में उनकी जिम्मेदारी कंपनी के विजन को तय करने और उसे पूरा करने के लिए एक ऐसी रणनीति तैयार करने की है, जो भारत में तेजी से बढ़ते कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री को बदल सके। माधवी एक सर्टिफाइट बैंकर हैं और फिलहाल वह कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और ह्यूमन रिसोर्सेस के बीच एक सहज संबंध बनाने में जुटी हैं।


सन्नी के पास टेक्नोलॉजी क्षेत्र का अनुभव है और वह कनाडा, सिंगापुर और फ्रांस में कई ग्लोबल कंपनियों में काम कर चुके हैं। स्टार्टअप में वह चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर (सीटीओ) की भूमिका में हैं। सीटीओ के तौर पर उनकी जिम्मेदारी आधुनिक तकनीकों को विकसित करने और उन्हें लागू करने की है, जो ट्रेसकॉस्ट के ग्राहकों को उनकी वित्तीय जानकारी को समझने, उनके पैसों का बेहतर ढंग से समझने और प्रबंधन करने में मदद और ग्राहकों को मोबाइल ऐप के जरिए रियल टाइम में प्रासंगिक जानकारी हासिल करने में सक्षम बनाना है। वह देश के इंफ्रास्ट्रक्चर इकोसिस्टम को पूरी तरह से बदल देने वाले सॉल्यूशंस पेश करना चाहते हैं। वह इससे पहले एल्सटॉम के लिए लिबिया, दुबई और पेरिस में कार्यान्वयन प्रक्रियाओं को बढ़ाने की अगुआई कर चुके हैं।


स्टार्टअप के COO पॉल प्रोसेस, रिपोर्टिंग और स्ट्रक्चर के बीच उचित तालमेल बनाकर ऑपरेशनल एक्सीलेंस को स्थापित करते हैं। उनके पास इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री की वैश्विक समझ है। इससे स्टार्टअप को व्यापक कारोबारी अनुभव मिलता है। उन्होंने पीएंडजी, निसान, ईवाई, सीमेंस, हुआवे, बॉश, क्रेडिट सुइस, मैरियट, एचपी, वॉलमार्ट और रेनॉ जैसे कई एंटरप्राइजेज के अलावा भारत सरकार के साथ कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स में भी काम किया है।


स्टार्टअप में फिलहाल 400 से अधिक डिजाइनिंग और इंजनीयिरिंग एक्सपर्ट काम कर रहे हैं। इसका लक्ष्य डिजाइन और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री से जुड़े सभी पहलुओं को शामिल करने वाला टेक्वनोलॉजी सॉल्यूशंस मुहैया कराना है।


समाधान

आज की तारीख में बड़े कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स के प्रंबंधन में स्टेकहोल्डर्स से कई दौर की बैठक में फीडबैक लेना, क्वॉलिटी कंट्रोल टेस्ट कराना और प्रोजेक्ट टीम के विभिन्न सदस्यों से इनपुट लेना शामिल है। असल में एक प्रोजेक्ट मैनेजर के लिए कम्युनिकेशन एक चुनौतीपूर्ण एरिया है, जिससे उसे पार पाना होता है।


ट्रेसकॉस्ट इन सभी समस्याओं का समाधान मुहैया कराती है। यह एक क्लाउड आधारित प्रोजेक्ट मैनेजमेंट सॉल्यूशंस मुहैया कराती है, जो इंजीनियर और ठेकेदार जैसे स्टेकहोल्डर्स को समस्याओं का पता चलने पर टीम से अपडेट हासिल करने, अहम रिपोर्टों को तैयार करने और अलर्ट होने में मदद करती है।


ट्रेसकॉस्ट सॉफ्टवेयर की मदद से प्रोजेक्ट मैनेजर या मालिक बिना किसी के ध्यान में आए मेटाडेटा को इकठ्ठा कर सकते हैं और यह देख सकते हैं कि टीम के विभिन्न सदस्य अपना काम कैसे कर रहे हैं। काम कर रहे व्यक्ति की आदतों, कम्युनिकेशन, फोकस, काम पर बिताए गए समय और उसके दूसरे गुणों का अध्ययन कर कई पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं।


ट्रेसकॉस्ट ऐप समस्या पैदा कर सकने वाले संभावित चरणों की पहचान करने और स्टेकहोल्डर्स के बीच संवाद की सटीकता और प्रमाणिकता सुधारने में मदद करने के लिए विशेष एल्गोरिदम को एकीकृत करता है। यह इस काम के लिए कई अलग-अलग तरह के सॉफ्टवेयर की जरूरतों को भी कम करता है।


फिलहाल यह टीम प्रोजेक्ट कार्यों और संसाधनों के प्रबंधन के लिए एक सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन, जानकारियों और डॉक्यूमेंट को शेयर करने के लिए दूसरा सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन, प्रोजेक्ट के समय और खर्चों की निगरानी के लिए तीसरा एप्लिकेशन और क्वॉलिटी कंट्रोल की जांच के लिए एक और एप्लिकेशन का इस्तेमाल करती है। स्टेकहोल्डर को फीडबैक आमतौर पर ईमेल या मैसेज के जरिए भेजा जाता है।


टीमें इन सभी अलग-अलग टुकड़ों को इकठ्ठा करने और हितधारकों के फीडबैक को ध्यान में रखते हुए प्रोजेक्ट को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं।


ट्रेसकॉस्ट इन सभी कार्यों और प्रक्रियाओं को एक सिंगल प्लेटफॉर्म पर जोड़ती है जो जटिल मुद्दों को सरल और आसानी से इस्तेमाल किए जा सकने वाले सॉल्यूशंस के जरिए ऑटोमेटिक तरीके से हल करता है। यह इंफ्रास्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के लिए भी एक अहम समस्या का हल करता है, और वह है- पारंपरिक रूप से इंसानों के जरिए किए जाने वाले कामों को मशीनों को सौंपते हुए उनमें होने वाली गलतियों को विश्वसनीय ढंग से कम करना।


इसके पीछे लक्ष्य यह है कि समय की खपत, दोहराव और रूटीन वर्क की मात्रा को कम किया जाए और रिजल्ट्स की पुनरावृत्ति और भविष्यवाणी को अधिकतम किया जाए।


लक्ष्य समय लेने वाली, दोहराव और नियमित कार्य की मात्रा को कम करना है, और परिणामों की पुनरावृत्ति और भविष्यवाणी को अधिकतम करना है।



बिजनेस

कंपनी टियर 1 और टियर 2 शहरों में प्रोजेक्ट मैनेजरों के साथ काम करती है।


माधवी ने बताया,

"हम भाग्यशाली हैं कि हमारे सहयोगियों और इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री ने हमें हाथोंहाथ स्वीकार किया है। बिक्री बढ़ाना, हमारे मन में कभी भी चुनौती नहीं थी। हम हमेशा से एक शानदार प्रॉडक्ट को बनाने के बारे में सोचते थे, जो एक सरल और प्रभावी समाधान के साथ जटिल समस्याओं को हल कर सकता हो।"


ट्रेसकॉस्ट की शुरुआत इसके फाउंडर्स की ओर से 1 करोड़ रुपये के निवेश से हुई थी। कंपनी ने अब तक दो क्लाइंट्स के साथ काम किया है और अपने मार्केट का विस्तार कर रही है। ट्रेस्कॉस्ट पे-पर-यूज मॉडल पर काम करता है और इसका मुकाबला इसी इंडस्ट्री में पहले से मौजूद एक स्टार्टअप, फाल्कनब्रिक के साथ है। कंपनी का मौजूदा मॉडल बी2बी इंडस्ट्री के लिए तैयार है, और यह आगे बी2बी2 मॉडल में विकसित होगा।


सनी बताते हैं कि यह विजन ट्रेसकॉस्ट की मुख्य कार्यक्षमता में शामिल है, जो प्रोजेक्ट से जुड़े सभी हितधारकों को एक मंच पर लाने में मदद करती है। ऐसे में अंतिम उपयोगकर्ता से लेकर परियोजना के मालिक भी बी2बी मॉडल में जुड़ जाएंगे।

मार्केट और भविष्य

IBEF के मुताबिक देश के रियल एस्टेट सेक्टर का मार्केट साइज को 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2017 में 120 अरब अमेरिकी डॉलर था। रियल एस्टेट इंडस्ट्री का जीडीपी में योगदान 2025 तक 13 प्रतिशत पहुंचने का अनुमान है। रिटेल, हॉस्पिटैलिटी और कमर्शिय रियल एस्टेट सेगमेंट में अच्छी ग्रोथ देखी जा रही है, जो देश की बढ़ती जरूरतों के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण में योगदान दे रहा है।


देश में कमर्शियल ऑफिस स्टॉक के 2018 के अंत तक 600 मिलियन वर्ग फुट को पार करने की उम्मीद है। वहीं शीर्ष आठ शहरों में लीज ऑफिस स्पेस के 2018-20 के दौरान 100 मिलियन वर्ग फुट को पार करने की उम्मीद है। आईटी और आईटीईएस, रिटेल, कंसल्टेंसी और ईकॉमर्स जैसे सेक्टर्स से हाल के दिनों में खासतौर से ऑफिस स्पेस के लिए भारी मांग देखी जा रही है।


जनवरी और सितंबर 2018 के बीच प्रमुख भारतीय शहरों में ग्रॉस ऑफिस एब्जॉर्प्शन सालाना आधार पर 26 प्रतिशत बढ़कर 36.4 मिलियन वर्ग फुट हो गया। 2018 में देश के शीर्ष सात शहरों में को-वर्किंग स्पेस तेजी से बढ़ा है और सितंबर तक यह 3.44 मिलियन वर्ग फुट हो गई थी। जबकि 2017 की इसी अवधि में यह सिर्फ 1.11 मिलियन वर्ग फुट था।


इसमें शामिल धनराशि बड़ी है, और यह स्टार्टअप सही इंडस्ट्री में है। हालांकि पिछले पांच वर्षों में रियल एस्टेट सेक्टर में थोड़ी सुस्ती आई है।


सन्नी ने बताया,

"हमने भारत सरकार की डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्मार्ट सिटीज और हाउसिंग फॉर ऑल जैसी परियोजनाओं और रेरा (RERA) जैसी पहलों का गहन अध्ययन किया है, जिन्हें वास्तव में इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री में ऑटोमेशन से लाभ पहुंचा हैं। इसलिए हम अपने देश के भविष्य के आर्थिक और बुनियादी ढांचे के विकास पर बड़ा दांव लगा रहे हैं और देश की इंफ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री के साथ मिलकर बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं।"



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